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शुभता,समृद्धि, भक्ति ,शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति का पर्व चैत्र नवरात्रि- डॉ रविन्द्र द्विवेदी

नवदुर्गा के नौ रुपों में प्रथम दिवस मां शैलपुत्री की आराधना।

चैत्र नवरात्रि पर्व हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ।

॥ या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ॥
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥

हिंदू धर्म में आस्था, भक्ति और साधना का विशिष्ट अवसर प्रदान करने वाला पर्व चैत्र नवरात्रि हर वर्ष वसंत ऋतु में आता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण, शक्ति साधना और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने वाला पर्व है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होने वाला यह पर्व माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना के साथ-साथ हिंदू नववर्ष एवं विक्रम संवत् के प्रारंभ का भी प्रतीक है।

हिंदू नव वर्ष का आरंभ और विक्रम संवत्
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन भारतीय कालगणना के अनुसार अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत् की स्थापना की गई थी, जो आज भी भारतीय पंचांग का आधार है। इस तिथि से सूर्य की गति में परिवर्तन होता है और प्रकृति में नवजीवन का संचार होता है। नववर्ष के इस शुभारंभ के साथ ही, जन-जन के जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और सुख-शांति की कामना की जाती है।
नवरात्रि के नौ दिन माँ भगवती के विभिन्न रूपों की आराधना के लिए समर्पित होते हैं। यह पर्व हमें आत्मसंयम, शुद्ध आचरण, और शक्ति की साधना का संदेश देता है।
पहला दिन माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की उपासना को समर्पित है, जो हमें साहस, धैर्य और अटूट श्रद्धा की प्रेरणा देती हैं।
माँ शैलपुत्री को समर्पित यह मंत्र भक्तों की आस्था और श्रद्धा को शक्ति प्रदान करता है—
॥ वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् ॥
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
इस मंत्र का जाप करने से भक्तों को आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है और जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

माँ शैलपुत्री की उपासना एवं पूजन विधि-
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन भक्तजन माँ शैलपुत्री की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। पूजन विधि इस प्रकार होती है—

1. कलश स्थापना (घटस्थापना) – यह देवी के आह्वान और पवित्र ऊर्जा को आकर्षित करने का प्रमुख अनुष्ठान है।

2. माँ शैलपुत्री की पूजा – माँ को सफेद पुष्प, अक्षत, रोली, चंदन, दूध, दही और गुड़ अर्पित किए जाते हैं।

3. व्रत और उपवास – भक्तगण नवरात्रि में सात्विक आहार ग्रहण कर संयमित जीवन जीते हैं।

4. भजन-कीर्तन और दुर्गा सप्तशती पाठ – माँ के चरणों में भक्ति भाव अर्पित करने के लिए विशेष मंत्रों और श्लोकों का जाप किया जाता है।

5. अखंड ज्योति – यह प्रतीक होती है भक्तों के अडिग संकल्प और निरंतर भक्ति की।


नवरात्रि केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक साधना का भी अवसर है। यह समय ऋतु परिवर्तन का होता है, जब शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए उपवास और सात्त्विक आहार की परंपरा अपनाई जाती है। देवी उपासना से मनोबल, आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
चैत्र नवरात्रि भारतीय संस्कृति और परंपराओं को सहेजने का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व हमें नारी शक्ति, धर्मपरायणता, संयम, और आत्मशुद्धि का संदेश देता है। देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा कर हम अपने भीतर की आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत कर सकते हैं।
चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस, जो शक्ति, श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, हमें नव संकल्प, नव ऊर्जा और नव चेतना की ओर प्रेरित करता है। माँ शैलपुत्री की कृपा से हर भक्त को सफलता, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। इस पर्व पर हर व्यक्ति को चाहिए कि वह सकारात्मक चिंतन, सत्कर्म और आत्मविश्लेषण के माध्यम से अपनी आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो।
आप सभी को चैत्र नवरात्रि पर्व एवं हिन्दू नववर्ष की बधाई एवं शुभकामनाएं।

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