रामनवमी महापर्व विशेष आलेख

समस्त आदर्श के न्यायदर्ष मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम- डॉ रविन्द्र द्विवेदी
राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्रनाम ततुल्यम रामनाम वरानने।।
रामनवमी महापर्व भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है जो भगवान श्री राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है यह पर्व बसंत ऋतु में होता है और हिंदू कैलेंडर के चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, श्रीहरि विष्णु के 10 अवतारों में से सातवें अवतार थे। श्री राम को हिंदू धर्म के महानतम देवताओं की श्रेणी में गिना जाता है।
भगवान श्री राम का जीवन मानवीय जीवन के लिए आदर्श स्वरूप है उनका हर रूप विशेष रहा है। चाहे वह पुत्र रूप में हो, या भाई के रूप में हों ,पति के रूप में हो, या राजा के रूप में हों योद्धा के रूप में हों या तपस्वी के रूप में। उनका हर रूप ,उनकी हर पहचान उन्हें शिरोमणि बनाती हैं और मर्यादा की पहचान कराती है। अमर्यादित आचरण से मनुष्य उच्च श्रृंखल हो जाता है लेकिन मर्यादित आचरण उसे चरित्रवान बनाता है।जिस तरह नदी का पानी जब बाढ़ के रूप में अमर्यादित होकर जहां-तहां बहता है तो तबाही फैलता है। जबकि वहीं पानी जब मर्यादा में बहता है तो अनेकों कार्यों में उपयोगी होता है, इस तरह मर्यादा मनुष्य को विशेष बनाती है उपयोगी बनाती हैं।
श्रीराम सतगुणों के भंडार थे। प्रभु राम न केवल दयालु और स्नेही थे, बल्कि उदार और सहृदयी भी थे। भगवान राम के पास एक अद्भुत शारीरिक और मनोरम शिष्टाचार था। श्री राम का व्यक्तित्व अतुल्य और भव्य था। वह अत्यंत महान उदार,शिष्ट और निडर थे। वे स्वभाव से बहुत सरल थे।
प्रभु श्री राम ने जन्म ही इसीलिए लिया,ताकि वे समाज में मर्यादा की स्थापना कर सके। मनुष्य को अमर्यादित आचरण से उबार सकें। नैतिक जीवन की शिक्षा दे सकें। समाज में धर्म की स्थापना कर सकें।
प्रभु श्री राम राजपथ के अधिकारी होते हुए भी उन्होंने सदैव तपस्या,साधना, त्याग का मार्ग चुना। अभ्यास को जीवन में प्राथमिकता दी, सुख,भोग का त्याग किया। भगवान श्री राम के जीवन का प्रत्येक प्रसंग ऐसा है जो मनुष्य जीवन के लिए आदर्श हैं, अनुकरणीय है उनका रहन-सहन, उनका व्यवहार, उनका आचरण, उनके वचन,उनका युद्ध कौशल सब कुछ सराहनीय तभी हैं तभी तो वे लोगों के हृदय में वास करते हैं।
श्री राम ने बाल्यकाल में अपने भाइयों के समझ आदर्श भाई का उदाहरण प्रस्तुत किया।उन्हें इतना प्रेम दिया कि उनके भाइयों के लिए भैया राम ही सब कुछ थे और वह उनके लिए कुछ भी कर सकते थे। गुरुकुल में भी प्रभु श्री राम ने एक सामान्य छात्र की तरह शिक्षा ली तथा सेवा कार्य करते हुए सबको संतुष्ट रखा उन्होंने कभी भी राजकुमार होने की विशिष्ट सुविधा या छूट नहीं ली। गुरु के आदेश का सशब्द पालन किया। जब उनके राजतिलक का अवसर आया तब ठीक उसी समय रानी कैकेई ने हठपूर्वक वचन पूर्ति हेतु महाराज दशरथ से यह वचन लिया कि राम को चौदह वर्ष का वनवास मिले और भरत का राज्याभिषेक हो, तो श्री राम ने यह प्रसन्न मन से स्वीकार किया और वनगमन के लिए चलें गए। ऐसे अवसर पर श्री राम ने अपने पिता को धर्म संकट में नहीं डाला और पिता के वचन का मान रखा। भगवान राम को दुनिया में एक आदर्श पुत्र के रूप में माना जाता है और अच्छे गुणों के प्रत्येक पहलू में विशिष्ट प्रतीत होते हैं। उन्होंने जीवन भर कभी झूठ नहीं बोला।
जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने मर्यादा नहीं छोड़ी। जब उनके समक्ष छलपूर्वक किया गया सीताहरण का महासंकट उपस्थित हुआ तब भी श्रीराम ने धैर्य पूर्वक आगे की रणनीति का निर्धारण किया। उन्होंने शारदीय नवरात्रि की साधना की, देवी शक्ति अर्जन किया।उन्होंने बलवान किंतु अन्यायी ,अधर्मी बाली को छोड़कर दीन-हीन सुग्रीव को अपना मित्र बनाया। मायावी रावण से मर्यादा का पालन करते हुए युद्ध में विजय श्री प्राप्त कर श्री राम ने समूचे संसार के समक्ष एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। चौदह वर्ष का वनवास भोगने के बाद प्रभु श्री राम जब सीता सहित अयोध्या पहुंचे तब उन्होंने सौतेली माता कैकई सहित सभी माताओं को पूरा आदर दिया। गुरु ऋषि-मुनियों एवं अयोध्यावासियों को सम्मान दिया। अयोध्या में राम राज्य की स्थापना की।राज पद का निर्वहन इसी श्रेष्ठता से किया कि आज भी श्रेष्ठ राजनेतृत्व की तुलना राम राज्य से की जाती है। इस तरह भगवान श्री राम में आदर्श लोकनायक के सभी गुण मौजूद थे और इसीलिए वे सदियों से जन-जन के आराध्य बने हुए हैं।
भगवान राम के जीवन के इन प्रसंगों से हमें नैतिकता, धर्म, प्रेम, और समर्पण के महत्व को समझने में मदद मिलती है। ये प्रेरणादायक कथाएं हमें सही मार्ग पर चलने और समाज में सहयोग और समर्थन प्रदान करने के लिए प्रेरित करती हैं।
आप सभी को आज रामनवमी व नवरात्रि सिद्धि उपासना के महापर्व की अनवरत बधाई एवं शुभकामनाएं ।