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मां की ममता चली, घर की लक्ष्मी चली, प्यारी बेटी जनक की अवध को चली- रत्नेश प्रपन्नाचार्य जी

विवाह संस्कार तब बनता है जब दूल्हा- दुल्हन अग्नि को वेद मंत्रों के साथ साक्षी मानकर श्रेष्ठ ब्राह्मण, माता-पिता, परिवार और समाज के समक्ष वैवाहिक बंधन में आबद्ध होते हैं। यह बातें अवधपुरी धाम से पधारे हुए अनंत श्री विभूषित आचार्य रत्नेश प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने वाल्मीकि रामायण की कथा का रसपान कराते हुए श्रोताओं के समक्ष श्रीदूधाधारी मठ, सत्संग भवन में श्री सीताराम विवाह की व्याख्या करते हुए अभिव्यक्त किया। उन्होंने कहा कि धर्मपत्नी वही कन्या होती है जिसका कन्यादान उसका पिता करता है या पिता के नहीं रहने पर उसके समकक्ष किसी व्यक्ति(ताऊ,चाचा) के द्वारा किया जाता है। माता सीता के विवाह के उपरांत जब उसकी विदाई की बेला उपस्थित हुई तब केवल मिथिला वासी ही नहीं बल्कि पशु पक्षी भी रो पड़े
वियोग के बाद संयोग होगा की नहीं ! यह तो पता नहीं है, लेकिन संजोग के बाद वियोग अवश्य ही होता है। वृक्ष से पत्ते और देह से प्राण विदा हो जाते हैं।आचार्य जी ने “प्यारी बेटी जनक की अवध को चली। मां की ममता चली, घर की लक्ष्मी चली।। प्यारी बेटी जनक की, अवध को चली।। गाकर स्रोताओ को भाव विभोर कर दिया। उन्होंने कहा कि- विवाह के समय प्रत्येक पिता अपनी कन्या को अपने सामर्थ के अनुसार दहेज दे करके विदा करता है, राजा जनक ने भी दिया। कन्या के पिता स्वेच्छा से जो कुछ भेंट देकर विदा करें उसे स्वीकार करना चाहिए लेकिन जोर जबरदस्ती धन लेना अनुचित है। उन्होंने कहा कि – भक्ति के मार्ग में यदि कोई बाधक बने तो उसका परित्याग कर देना ही श्रेयस्कर है। जब तक आप परिपूर्ण परमात्मा से नहीं जुड़ जाते तब तक आपके जीवन में अपूर्णता बनी ही रहेगी। श्री दूधाधारी मठ महोत्सव के पंचम दिवस के द्वितीय सत्र में सांसद बृजमोहन अग्रवाल भी उपस्थित हुए उन्होंने इस अवसर पर श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि –  पूरे छत्तीसगढ़ में धर्म की ध्वजा को फहराने का कार्य श्री दूधाधारी मठ द्वारा किया जाता है, मेरे पिता जी, मैं और मेरा परिवार इस मठ से पीढ़ी दर पीढ़ी जुड़े हुए हैं। इस पीढ़ी का सौभाग्य है कि 500 वर्षों बाद श्री राम अयोध्या में विराजित हुए हैं।मंच पर हर दिन की तरह महामंडलेश्वर राजेश्री महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज एवं अन्य अतिथि गण विराजित थे।

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