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गांधी जयंती पर विशेष आलेख – डॉ रविन्द्र द्विवेदी

अहिंसा,सत्यता,शालीनता,मानवता,राष्ट्रीयता स्वतंत्रता,के प्रणेता-राष्टपिता महात्मा गांधी

आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जयंती है। 02अक्टूबर 1869 में मोहनदास करमचंद गांधी जी का जन्म हुआ था। गांधी जी का जिस घर में जन्म हुआ था आज यह स्थल कीर्ति मंदिर कहलाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस स्थल पर महात्मा गांधी जी की प्रतिमा नहीं है प्रतिदिन सुबह 5:00 बजे गांधी जी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए पीर पराई जाने रे’ गाया जाता है इस मंदिर का लोकार्पण सरदार पटेल ने सन 1950 में किया। इस मंदिर में 500 लोग रोज दर्शन करने आते हैं।
दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।।
महात्मा गांधी जी सिर्फ फोटो में हंसते हुए एक नाम नहीं है बल्कि वे शांति और अहिंसा के पुजारी थे, गांधीजी महान राष्ट्र चिंतक, मां भारती के सच्चे सपूत,राष्ट्रभक्त,राष्ट्रवादी विचारक, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समृद्ध एवं सशक्त भारत के स्वप्न दृष्टा, सत्य एवं विश्व शांति के अग्रदूत, लोकनायक भारतीय संस्कृति के परम संवाहक, युगपुरुष थे। अविस्मरणीय छवि के पुंज गांधीजी गरीबों के मसीहा एवं युग दृष्टा थे।
एक सामान्य कद काठी का व्यक्ति मोहनदास करमचंद गांधी ने अपने जीवन में कई मूल्यों और सिद्धांतों का सामाजिक स्वरूप थे।अपने जीवन काल में भी अपने रिश्तेदारी और मित्रों के लिए कभी किसी बात पर समझौता नहीं किया ।महात्मा गांधी इस संसार में 79 साल तक जिए। 17 बड़े आंदोलन किए जिनमें 144 दिन भूखे रहे।इनमें 2 बार तो 21 21 दिन के अनशन पर थे। सन 1921 में व्रत लिया, आजादी मिलने तक हर सोमवार उपवास करूंगा यानि कुल 13 साल 41 दिन उपवास किया। आंदोलन में संलिप्तता के चलते 13 बार गिरफ्तार हुए।जिनमें 6 साल 5 महीने जेलों में कांटे और 24 साल विदेश में रहे।यही वजह है कि हम आज उन्हें ‘महात्मा’के रूप में याद करते हैं।
गांधीजी ने जीवन पर्यंत सत्य को अपनाया उनके लिए सत्य ही ईश्वर का पर्याय था झूठ को हमेशा पाप की संज्ञा दिया उन्होंने देशवासियों को सत्य का पाठ पढ़ाया वास्तव में हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख आध्यात्मिक एवं राजनीतिक नेता थे वे अहिंसा परमो धर्म के परम अनुवाई थे।
गांधी जी का विचार था कि मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। गांधीजी इस महान भारत भूमि में हिंसा,स्वार्थ, ईर्ष्या, द्वेष, छुआछूत, जातिभेद, रंगभेद को मिटाने के लिए जन्म लिए थे ।उन्होंने अहिंसा का मूल मंत्र दिया और जीवन पर्यंत इसका पालन भी किया। गांधी जी का कहना था कि विश्व में शांति स्थापना करनी है तो पूरे विश्व को अहिंसा की राह पर चलना पड़ेगा।
महान दार्शनिक महात्मा गांधी जी ने एक ऐसे भारत का कल्पना किया था जहां गांव विकसित हो, वह विकास की राह में आगे आए किंतु आज भी बहुत से गांव ऐसे हैं जो पिछड़े हुए हैं। गांधी जी का कहना था कि भारत का दिल गांवों में बसता है। देश की लगभग 70 परसेंट से अधिक आबादी गांव में निवास करती है ।भारतीय अर्थव्यवस्था पूर्णतया गांवों पर निर्भर है, एवं अधिकांश आबादी जो कि किसान वर्ग से है कृषि पर निर्भर है।
गांधी जी का कहना था कि हमारी धरती में सोना छिपा है। हमारे भारत के श्रमवीर अपने श्रम की बूंदों से इस भूमि को सींचकर कर नए भविष्य की कहानी गढ़ने में समर्थ है। उनका मानना था कि गांव उन्नत होंगे तो राष्ट्र उन्नत होगा। उन्होंने हमेशा किसानों को भारत का भाग्य विधाता एवं धरतीपुत्र माना है। वास्तव में गांधीजी श्रम के सच्चे उपासक थे।
गांधी जी अपने सपनों के भारत में विकसित गांव को देखते थे उन्होंने अपने सपनों के भारत में गांव के विकास की प्रमुखता प्रधान करके इस देश की उन्नति निर्धारित होने की बात कही थी गांधी जी ने अपने सपनों के भारत में अपनी व्यापक दृष्टि का परिचय देते हुए ग्रामीण विकास की तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति कर के ग्राम स्वराज्य पंचायत राज ग्राम उद्योग महिलाओं की शिक्षा गांव की सफाई गांव का आरोग्य व समग्र विकास के माध्यम से एक सवाल लंबी व सशक्त देश के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था गांव में ग्राम उद्योग की दयनीय स्थिति से चिंतित गांधी जी ने स्वदेशी अपनाओ विदेशी भगाओ के जरिए गांवों को खादी निर्माण से जोड़कर अनेकों बेरोजगार लोगों को रोजगार दिया स्वतंत्रता के पश्चात एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते थे जहां उच्च नीच और महिला पुरुष का भेद पूर्णता समाप्त हो और सभी अपने मताधिकार का विवेकपूर्ण प्रयोग करके अपने प्रतिनिधि का चयन कर लोकतंत्र की नींव को मजबूत करें गांधीजी महिलाओं के पुनरुत्थान एवं उनको सामाजिक कुरीतियों और रूढ़ियों से मुक्त कराने के लिए प्रतिबद्ध थे वह महिलाओं के सम्मान के लिए उनके समान अधिकार व देश के सामाजिक राजनीतिक आर्थिक विकास में उनकी महत्वपूर्ण सभा गीता के पुरजोर समर्थक थे।
गांधी जी ने हमेशा स्वच्छता पर बल दिया वे किसी भी तरह की लॉक लग जा की प्रवाह किए बिना अपना शौचालय स्वयं साफ करते थे स्वच्छता को लेकर गांधीजी का मानना था कि यदि कोई व्यक्ति शख्स नहीं है तो वह स्वस्थ नहीं हो सकता है।स्वच्छता गांधीजी के जीवन का अनिवार्य अंग था उनका विचार था एक पवित्र आत्मा के लिए एक स्वस्थ शरीर में रहना उतना ही महत्वपूर्ण है।जितना किसी स्थान,शहर, राज्य और देश के लिए स्वच्छ रहना जरूरी होता है ताकि इस में रहने वाले लोग स्वच्छ और ईमानदार हो सके। भारत को साफ- सुथरा देखना गांधीजी का सपना था।
गांधीजी चाहते थे कि सत्ता का विकेंद्रीकरण हो और गांव के लोग स्वयं अपना प्रशासन संभाले। इससे ग्रामीण समाज में जागृति आएगी और वह आत्मा निर्भर हो सकेगा ।ग्रामीण रोजगार के लिए गांधीजी का सुझाव था कि गांव में लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास किया जाए।गांव के लोगों को रोजगार की तलाश में बाहर ना जाना पड़े।
गांधीजी गरीबों के मसीहा थे उन्होंने कहा था कि मैं ऐसे भारत के लिए कार्य करूंगा जहां अत्यंत गरीब व्यक्ति यह अनुभव करें कि यह उसका अपना देश है जिसके निर्माण में उसकी भी महत्वपूर्ण भूमिका है।ऐसा भारत जहां ना कोई बड़ा होगा ना कोई छोटा ऐसा भारत जहां सभी समुदाय पारिवारिक एवं पूर्ण मैत्री भाव से रह सके।
गांधी जी ने स्वदेशी पर बल दिया और विदेशी वस्तुओं का हादसा बहिष्कार किया वास्तव में गांधीजी स्वदेशी के परम अनुयायी थे।
हमें लगता है कि हम उनके बताए मार्ग से विमुख होते जा रहे हैं ऐसे में जरूरी है कि हम अहिंसा, सत्य, प्रेम, इमानदारी, शालीनता, स्वावलंबन, सत्याग्रह और स्वराज की संकल्पना को अपने भीतर पुर्नजागृत करें। गांधीवादी जीवन शैली को अपने जीवन में आत्मसात करें।

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