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लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती पर नमन

वर्ष 2025, भारतीय इतिहास और संस्कृति के लिए विशेष है। यह वर्ष लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती का स्मरण वर्ष है। सन 1725 में महाराष्ट्र के चौंडी गाँव में जन्मी अहिल्याबाई नारी शक्ति, धर्मनिष्ठा और प्रशासनिक कुशलता की जीवंत प्रतिमा थीं।

पति मल्हारराव होलकर के निधन के बाद उन्होंने न केवल राज्य की बागडोर संभाली, बल्कि अपने सुशासन, न्यायप्रियता और धर्म-संरक्षण से पूरे भारतवर्ष में एक आदर्श स्थापित किया। अहिल्याबाई ने काशी विश्वनाथ, सोमनाथ, बद्रीनाथ, रामेश्वरम्, महेश्वर जैसे अनेकों तीर्थों का जीर्णोद्धार कराया, पथिकों के लिए धर्मशालाएं बनवाईं, और नारी शिक्षा व सामाजिक उत्थान को भी प्रोत्साहित किया।

उनका शासन धर्म और करुणा पर आधारित था — उन्होंने अपने पुत्र तक को गौहत्या के अपराध में दंडित किया, जिससे उनके न्याय की निष्ठा प्रमाणित होती है।

आज, जब सामाजिक मूल्यों और सेवा की भावना को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है, अहिल्याबाई का जीवन दर्शन हमें मार्गदर्शन और प्रेरणा देता है।

उनकी तीन सौवीं जयंती पर हम सब उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं-
एक ऐसी लोकमाता को, जिनकी लोकसेवा आज भी जीवंत आदर्श है।

लोक माता-अहिल्या बाई

धर्म भूमि की दीप ज्योति,
हे अहिल्या पुण्यस्मृति स्वरूप;
त्याग, तपस्या, सेवा की
बनीं लोकगाथा की रूप।

शक्ति स्वरूपा, ज्ञान निधि,
राजनीति की मर्मज्ञ नारी।
होलकर कुल की गौरवगाथा,
हर युग में रही उजियारी।

राजधर्म का रखा विधि-निष्ठ,
नारी को भी अधिकार दिए।
अन्नदाता को दी संजीवनी,
गांव-गांव में साधन किए।

धर्म,नीति,संस्कृति की देवी,
हर निर्णय में दृढ़ता लाईं।
पुत्र मोह में भी न बहकीं,
गौ-रक्षा में मर्यादा निभाईं।

तीर्थमंदिर,पथिक-स्थल,
उनके हाथों पुनः सजे।
काशी से केदारनाथ तक,
हिंदू धर्म फिर से खिले।

मुगल आँधी, अंग्रेजी सत्ता,
न डिगा सकीं नारी महान।
धर्म, संस्कृति, राष्ट्र रक्षा में
बनीं भारत माँ की पहचान।

माँ अहिल्या! पुण्य तपोमयी
सनातन संस्कृति की ज्वाला।
तीन सौवीं जयंती पर  नमन
अर्पित है भाव पुष्प माला।।

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