राम भारत की आत्मा है, राम हमारे सांसों में समाए हुए हैं -रत्नेश प्रपन्नाचार्य जी महाराज

दो चीज जीवन में अपनालो नाम और प्रणाम इससे आपका कल्याण हो जाएगा
श्री दूधाधारी मठ में आयोजित संगीतमय श्री राम कथा एवं भव्य संत सम्मेलन में द्वितीय दिवस श्रोताओं को श्रीमद् बाल्मीकि रामायण की कथा का रसपान कराते हुए अयोध्या धाम से पधारे हुए अनंत श्री विभूषित आचार्य रत्नेश प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने कहा कि- यह मानव जीवन हमें भगवान को जानने के लिए प्राप्त हुआ है। इतना श्रेष्ठ मनुष्य का जीवन प्राप्त करके यदि हमें भगवत भक्ति ना मिले तो यह जीवन ही व्यर्थ है। हमें अपने जीवन में राम जी की शरणागति करनी चाहिए। राम जी को छोड़कर कोई मार्ग भी नहीं है, राम जी को छोड़कर कहीं जाया भी नहीं जा सकता! काल के भय से यदि आपको बचाना है तो राम जी की शरणागति कर लो। दुनिया काल से डरती है और काल राम जी से डरता है। दो चीज जीवन में अपना लो ‘नाम’ और ‘प्रणाम’ भगवान का लिया गया नाम पाप का नाश करता है और प्रणाम जीवन में दुख का नाश कर देता है। मन का निर्मल होना ही राम जी की प्राप्ति की पात्रता है, मन निर्मल कैसे हो ? इसके लिए आपको रामायण की कथा सुनना चाहिए। उन्होंने ऋषि, महात्मा, साधु, संत, मुनि शब्द का विश्लेषण करते हुए कहा कि ऋषि मंत्र दृष्ट होता है, महात्मा सब के द्वारा पूजनीय होते हैं। साधु परोपकारी होता है। संत जीवन में सहनशीलता को ग्रहण करते हैं और मुनि वह है जो मननशील होता है। मंच पर विराजित राजेश्री महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज के संदर्भ में उन्होंने कहा कि- महाराज जी एक आसन में बैठकर कथा श्रवण करते हैं यह तपस्वी होने का प्रमाण है। बिना तपस्या के भगवान की कथा सुनी भी नहीं जा सकती है। उन्होंने कहा कि- राम भारत की आत्मा हैं, राम हमारे सांसों में समाए हुए हैं। कंप्यूटर का युग आ गया भले ही वह ‘रेम’ से चलता है लेकिन उसका स्पेलिंग भी ‘आर ए एम’ (राम )ही है। श्री दूधाधारी मठ महोत्सव के द्वितीय दिवस राम कथा का रसपान करने के लिए अनेक गणमान्य नागरिक गण उपस्थित हुए।