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परीक्षा परिणाम एक आईना-अमृत लाल साहू

शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय चोरिया विकास खण्ड बम्हनीडीह जिला जांजगीर चांपा के व्याख्याता श्री अमृत लाल साहू का विचार है कि आईना कभी झूठ नहीं बोलता।वह हकीकत को बयां कर ही देता है ।इससे हम अपने चेहरे की वास्तविकता से रूबरू होते हैं। ठीक इसी प्रकार परीक्षा परिणाम भी एक आईने का काम करता है। इसमें एक शिक्षक की अपने व्यवसाय के प्रति ईमानदारी, विषयगत दक्षता, कर्तव्य निष्ठा, लगन और समर्पण का प्रतिबिंब झलकता है। जब एक शिक्षक के अध्यापन विषय का परिणाम अच्छा आता है तो वह  अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता है। अपने श्रम और समर्पण को सार्थक समझता है ।यद्यपि लोगों को परिणाम से सरोकार होता है ,प्रयास से नहीं और विडंबना यह है कि हमारे हाथ में प्रयास होता है परिणाम नहीं।
       यदि देखा जाए तो किसी भी विषय या विद्यालय का परीक्षा परिणाम एकाएक शत् प्रतिशत या अच्छा नहीं आता ,इसके लिए कोई’ ” जादू की छड़ी नहीं होती ” कि इसे घुमाया  और रिजल्ट अच्छा आ गया । अपितु इसके लिए शिक्षक को कुछ आधारभूत कार्य करने होते हैं — जैसे कि विद्यालय में अनुशासन व्यवस्था ।हम जानते हैं कि अनुशासन ही सफलता का मूल मंत्र है और यही विद्यालय की आधारशिला भी है ।विद्यार्थी स्वस्फूर्त अनुशासन का पालन कर सकें इसके लिए विद्यालय में विद्यार्थियों का निदानात्मक उपचार ,नैतिक शिक्षा पर बल, अच्छे कार्यों पर पुरस्कार ,पालकों से संपर्क तथा रचनात्मक कार्यों को स्थान देना चाहिए ।साथ ही देश और दुनिया के सफलतम लोगों की जीवनी से विद्यार्थियों को अवगत कराते रहना चाहिए और अपने आसपास के सफल लोगों को स्कूल  के कार्यक्रमों में आमंत्रित करना चाहिए जिससे बच्चे प्रेरणा लेकर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें।                           
               मेरा मानना है कि जब एक शिक्षक पूरी ईमानदारी के साथ विद्यार्थियों से जुड़ जाता है और उनकी विषयगत कठिनाइयों को पूरी निष्ठा के साथ हर संभव दूर करता है तो उसके अध्यापन विषय का परीक्षा परिणाम  अच्छा ही आता है ।शिक्षकों को चाहिए कि कक्षा- कक्ष में विद्यार्थियों को अधिक से अधिक प्रश्न करने के लिए प्रोत्साहित करें और उनके प्रश्नों का समुचित उत्तर भी दें। इससे बच्चों की झिझक दूर होती है साथ ही पाठ्य वस्तु के प्रति समझ भी विकसित होती है। जिस प्रकार से एक सैनिक युद्ध के मैदान में जाने से पूर्व अपने अस्त्र-शस्त्रों की भली भांति जांच परख कर लेता है ठीक इसी प्रकार एक शिक्षक को भी अध्यापन कक्षा में जाने के पूर्व अपने पाठ्यवस्तु का गहन अध्ययन कर लेना चाहिए तभी वह समुचित ढंग से अपने विषय वस्तु को समझा सकता है।कोशिश की जानी चाहिए कि पाठ्यवस्तु को विद्यार्थियों की दिनचर्या,उनके परिवेश समसामयिक घटनाक्रम तथा अपने अनुभवों से जोड़ते हुए अध्यापन कार्य किया जाए। शिक्षा सत्र के आरंभ से ही ब्लूप्रिंट के आधार पर परीक्षा के लिए पूरे पाठ्यक्रम की तैयारी करवानी चाहिए। प्रत्येक दिन गृह कार्य में कम से कम तीन- चार प्रश्नों  को याद करके आने और लिखकर लाने के लिए कहना चाहिए। स्थानीय और वार्षिक परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने वाले बच्चों के साथ-साथ उनके पालकों का भी सम्मान करना चाहिए। इससे दूसरे विद्यार्थी और पालक भी प्रोत्साहित होते हैं। वर्ष में कम से कम तीन-चार बार पालकों को आमंत्रित करके उनके पाल्य की पढ़ाई के बारे में अवगत कराना चाहिए। साथ ही पालक सम्मेलन और घर संपर्क भी करते रहने से वे अपने बच्चों की शैक्षिक प्रगति से अवगत होते रहते हैं।                      मुझे विश्वास है कि यदि उपरोक्त गतिविधियों को हम अपने विद्यालय में संचालित करते हैं तो निश्चित ही हमारे विद्यालय का परीक्षा परिणाम  बेहतर  आयेगा ।
इस वर्ष उनके अध्यापन विषय हिंदी कक्षा 12वीं का परीक्षा परिणाम शत् प्रतिशत रहा। कुल 124 परीक्षार्थियों ने परीक्षा में भाग लिया और सभी उत्तीर्ण हुए। इसमें 102 विद्यार्थी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए जिसमें 55 विद्यार्थियों को विशिष्ट योग्यता ( D) के अंक प्राप्त हुए हैं ।
     विगत कई वर्षों में हिन्दी के अतिरिक्त इनके अध्यापन विषय भूगोल तथा अर्थशास्त्र कक्षा बारहवीं का  परीक्षा परिणाम भी शत् प्रतिशत रहा है।

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